कॉस्मिक  रिलिजन :-



 सनातन यानि सना + तन, सना का मतलब आत्मा का इश्वरिये सत्ता से जुड़ा होना और तन का मतलब शरीर यानि जो मानव इश्वरिये सत्ता, न्याय, धर्म और नीति से जुड़ा हैं वो सनातनी हैं। सनातन धर्म एक इश्वरिये धर्म हैं। दुसरे अर्थो मे सनातन क मतलब चिरकालीन या अनन्त याँ सार्वकालिन या जीवंत होता हैं। धर्म का मतलब सद्गुण या सदाचार या सिद्धांत या स्वभाव या प्रकृति होता हैं। इस प्रकार सनातन धर्म जिवन जीने कि एक आध्यात्मिक पद्धति या व्यवस्था हैं, कुछ स्वस्थ का, नीति और न्याय का एक आध्यात्मिक पद्धति या व्यवस्था हैं। अतह इस सनातन धर्म एवम्‌ पद्धति या सिद्धांत को मानने वाले, इसमे जीने वाले हिन्दू कहलाते हैं। सनातन धर्म यानि जिवंत सद्गुण या प्राकृतिक स्वभाव मे जो सारी जिवन जीते हैं वो हिन्दू हैं। सनातन धर्म को अंग्रे़जी में स्पिरिचुअल सांइस कहा गया हैं। और सनातन धर्म का मतलब "नीतिपरायंता(न्याय) का प्राचीन कानून" भी होता हैं।  

सनातन धर्म के एक दूसरा पहलू भी हैं, जब वेद नही थे तो कानुन बेवस्था कैसे कायम की जाती थी ? वेद से पहले आध्यात्मिक विज्ञान को जानने वाले ॠषि गन के द्वारा ही शिक्षा और कानून की बेहतर बेवस्था कायम की जाति थी। लोगों के दुख-दर्द ॠषि ही दूर करते थे। आध्यात्मिक दुनियां में ब्रह्मांडपति सुर्यनारायन हैं, और भूलोक प्रधान ब्रह्मदेव हैं और भुलोक मुख्य विष्णु, महादेव व अन्य हैं। सुर्यदेव ही परमइश्वर, परब्रह्म है और इनका काम ब्रह्मांड, पृथ्वी, प्रकृति तथा जीव में सामंजस्य स्थापित करना और जीवों को भोजन के लिये अनुकुल बातावरन बनाना हैं। परमइश्वर सुर्यदेव के अंदर में गंगा और चंद्रदेव दोनों बास करते हैं क्योँकि चंद्रदेव को प्रकाश सुर्य से ही मिलती हैं और गंगा यानी पानी जो हाइड्रोजन के रुप में सुर्य के अंदर समाहित हैं । अगर तिसरी आँख की बात करें तो सुर्य के अंदर इतनी तेज हैं, यानी आग हैं कि पल भर में सब कुछ जल कर राख हो सकता हैं। सूर्य गायत्री मंत्र "ऊँ आदित्याय विदमहे दिवाकराय धीमहि तन्नो सूर्यः प्रचोदयत।" हे ओम! हे सूर्य देव मैं आपकी आराधना करता हूं, आप मुझे ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित करें"।

सनातन धर्म में प्राकृतिक शक्तियों की ही पूजा की जाती थी और कर्मकांडों की प्रमुखता नहीं थी। मूर्ति पूजन नहीं होता था और ना ही मंत्रोचार किया जाता था। कर्मकांडों जैसे पूजा-पाठ, व्रत,यज्ञ आदि सनातन धर्म में नहीं होते थे। सनातन धर्म को वास्तव में ऋग्वैदिक सनातन धर्म भी कहा जाता है। सनातनी मुख्य रूप से केवल ब्रह्माण्ड को धारण करने वाले एकमात्र परमपिता परमेश्वर के पूजक थे। सनातनी केवल ईश्वर को ही मानते थे। सनातन धर्म का एक मात्र मन्त्र गायत्री मंत्र हैं गायात्री महामंत्र का गायात्री छ्न्द-विश्वामित्र ऋषी और सविता देवता हैं जो सविता (सूर्य देव) को समर्पित है। सविता बोल-चाल की भाषा में सूर्य कौ कहते हैं। सावित्री में जो शक्ति हैं, वह सविता हैं। यों सविता, परब्रह्म परमात्मा को भी कहते हैं। सविता परमात्मा का तेजपुंज ब्रह्म हैं, जिसके प्रभाव और प्रकाश से यह सारा द़ृश्य जगत सक्रिय हैं। उस सविता की समग्र क्षमता एवम्‌ स्थिति की प्राण प्रक्रिया को सावित्री माना गया हैं। शरीर और प्राण में जो संबंध है, वही सविता और सावित्री में है । प्राणी के अस्तित्व को प्रकाश एवं अनुभव में लाने के लिए शरीर चाहिए और शरीर सजीव बना रहे, उसके लिए उसमें प्राण की स्थिति आवश्यक है। एक के बिना दूसरे की गति नहीं, स्थिति नहीं, उपयोगिता नहीं, शोभा नहीं । इसी प्रकार सविता और सावित्री एक दूसरे के लिए जुड़े हुए हैं।

सनातन धर्म में प्राकृतिक शक्तियों की ही पूजा की जाती थी और कर्मकांडों की प्रमुखता नहीं थी। मूर्ति पूजन नहीं होता था और ना ही मंत्रोचार किया जाता था। कर्मकांडों जैसे पूजा-पाठ, व्रत,यज्ञ आदि सनातन धर्म में नहीं होते थे। सनातन धर्म को वास्तव में ऋग्वैदिक सनातन धर्म भी कहा जाता है। सनातनी मुख्य रूप से केवल ब्रह्माण्ड को धारण करने वाले एकमात्र परमपिता परमेश्वर के पूजक थे। सनातनी केवल ईश्वर को ही मानते थे। सनातन धर्म का एक मात्र मन्त्र गायत्री मंत्र हैं गायात्री महामंत्र का गायात्री छ्न्द-विश्वामित्र ऋषी और सविता देवता हैं जो सविता (सूर्य देव) को समर्पित है। सविता बोल-चाल की भाषा में सूर्य कौ कहते हैं। सावित्री में जो शक्ति हैं, वह सविता हैं। यों सविता, परब्रह्म परमात्मा को भी कहते हैं। सविता परमात्मा का तेजपुंज ब्रह्म हैं, जिसके प्रभाव और प्रकाश से यह सारा द़ृश्य जगत सक्रिय हैं। उस सविता की समग्र क्षमता एवम्‌ स्थिति की प्राण प्रक्रिया को सावित्री माना गया हैं। शरीर और प्राण में जो संबंध है, वही सविता और सावित्री में है । प्राणी के अस्तित्व को प्रकाश एवं अनुभव में लाने के लिए शरीर चाहिए और शरीर सजीव बना रहे, उसके लिए उसमें प्राण की स्थिति आवश्यक है। एक के बिना दूसरे की गति नहीं, स्थिति नहीं, उपयोगिता नहीं, शोभा नहीं । इसी प्रकार सविता और सावित्री एक दूसरे के लिए जुड़े हुए हैं।

सनातनधर्म के सिद्धान्त के कुछ मुख्य बिन्दु :-

1. ईश्वर एक नाम अनेक.जैसे इश्वर, परमेश्वर, अल्लाह, यहोवा इत्यादी
2. परमेश्वर अनेक नही हैं, पर भगवान, महात्मा, देवाअत्मा, दिव्यआत्मा अनेक हैं।
3. सप्ताह मे एक बार रविवार के दिन ग्रुप में सार्वजनिक ध्यान साधना मानव कल्याण के लिए जरूरी हैं। 
4. "ॐ भास्कराय विधमहे दिवाकराय धिमही तन्ह सुर्यह प्रचोदयात" मंत्र का जाप करें।
5. ब्रह्म या परम तत्त्व सर्वव्यापी है।
6. परमेश्वर से डरें नहीं, प्रेम करें और प्रेरणा लें. 
7. परमेश्वर के लिए कोईं बड़ा या छोटा नही है, सब समान हैं।
8. परमेश्वर धर्म और पंथ से ऊपर हैं।
9. प्रकृति, मानव एवम्‌ जीवमात्र की सेवा ही परमात्मा की सेवा है। 
10. परमेश्वर से प्रेम का अर्थ है, मानवता से प्रेम या मानवधर्म का अनुसरण करना।
11. सनातन धर्म मानव धर्म का ही दुसरा रुप हैं।
12. आत्मा अजर-अमर है।
13. हिन्दुओं के पर्व और त्योहार खुशियों से जुड़े हैं।
14. हिन्दुत्व का लक्ष्य पुरुषार्थ है जैसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष
15. हिन्दुत्व एकत्व का दर्शन है।
16. सनातन दृष्टि समतावादी और मानवतावादी हैं।
17.सनातन धर्म एकत्व का ब्रह्म दर्शन हैं।
18. परोपकार पुण्य है, दूसरों को कष्ट देना पाप है।
19. भारत इश्वर की धरती हैं।
ऋग्वैदिक सनातन काल में सनातन धर्म के अलावा और कोई अन्य मुख्य सम्प्रदाय(वर्णाश्रम) नही था जैसे वैष्णव (जो विष्णु को परमेश्वर मानते हैं), शैव (जो शिव को परमेश्वर मानते हैं), शाक्त (जो देवी को परमशक्ति मानते हैं) और स्मार्त (जो परमेश्वर के विभिन्न रूपों को एक ही समान मानते हैं) इत्यादि। बाद मे वैदिक धर्म का आगमन हुआ। मानव का आत्मा ही ब्रह्म हैं और जब मानव ब्रह्म को अपने मन से जानने की कोशिश करता है, तब ब्रह्म भगवान हो जाता हैं। प्रणव ॐ (ओम्) ब्रह्मवाक्य है, जिसे सभी हिन्दू परम पवित्र शब्द मानते हैं। हिन्दू यह मानते हैं कि ओम् की ध्वनि पूरे ब्रह्माण्ड में गूंज रही है। ध्यान में गहरे उतरने पर यह सुनाई देता है। प्रणव ॐ (ओम्) ब्रह्मवाक्य के उच्चारण से आत्म ब्रह्म अपने भुतकाल और सृष्टि से जुड़े विषय की जानकारी देता हैं। ब्रह्म हिन्दू धर्मग्रन्थ उपनिषदों के अनुसार ब्रह्म ही परम तत्त्व है (इसे त्रिमूर्ति के देवता ब्रह्मा से भ्रमित न करें)। वो ही जगत का सार है, जगत की आत्मा है। वो विश्व का आधार है।

सनातन धर्म का सबसे बड़ा पर्व छठ पर्व हैं। 


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