सनातन धर्म और हिन्दु धर्म में बेसिक अंतर क्या हैं ?
सनातन धर्म :
सनातन धर्म में प्राकृतिक शक्तियों की ही पूजा की जाती थी और कर्मकांडों की प्रमुखता नहीं थी। मूर्ति पूजन नहीं होता था और ना ही मंत्रोचार किया जाता था। कर्मकांडों जैसे पूजा-पाठ, व्रत,यज्ञ आदि सनातन धर्म में नहीं होते थे। सनातन धर्म को वास्तव में ऋग्वैदिक सनातन धर्म भी कहा जाता है। सनातनी मुख्य रूप से केवल ब्रह्माण्ड को धारण करने वाले एकमात्र परमपिता परमेश्वर के पूजक थे। सनातनी केवल ईश्वर को ही मानते थे। सनातन धर्म का एक मात्र मन्त्र गायत्री मंत्र हैं गायात्री महामंत्र का गायात्री छ्न्द-विश्वामित्र ऋषी और सविता देवता हैं जो सविता (सूर्य देव) को समर्पित है। सविता बोल-चाल की भाषा में सूर्य कौ कहते हैं। सावित्री में जो शक्ति हैं, वह सविता हैं। यों सविता, परब्रह्म परमात्मा को भी कहते हैं। सविता परमात्मा का तेजपुंज ब्रह्म हैं, जिसके प्रभाव और प्रकाश से यह सारा द़ृश्य जगत सक्रिय हैं। उस सविता की समग्र क्षमता एवम् स्थिति की प्राण प्रक्रिया को सावित्री माना गया हैं। शरीर और प्राण में जो संबंध है, वही सविता और सावित्री में है । प्राणी के अस्तित्व को प्रकाश एवं अनुभव में लाने के लिए शरीर चाहिए और शरीर सजीव बना रहे, उसके लिए उसमें प्राण की स्थिति आवश्यक है। एक के बिना दूसरे की गति नहीं, स्थिति नहीं, उपयोगिता नहीं, शोभा नहीं । इसी प्रकार सविता और सावित्री एक दूसरे के लिए जुड़े हुए हैं।
सनातनधर्म के सिद्धान्त के कुछ मुख्य बिन्दु :-
1. ईश्वर एक नाम अनेक.जैसे इश्वर, परमेश्वर, अल्लाह, यहोवा इत्यादी
2. परमेश्वर अनेक नही हैं, पर भगवान, महात्मा, देवाअत्मा, दिव्यआत्मा अनेक हैं।
3. सप्ताह मे एक बार रविवार के दिन ग्रुप में सार्वजनिक ध्यान साधना मानव कल्याण के लिए जरूरी हैं।
4. "ॐ भास्कराय विधमहे दिवाकराय धिमही तन्ह सुर्यह प्रचोदयात" मंत्र का जाप करें।
5. ब्रह्म या परम तत्त्व सर्वव्यापी है।
6. परमेश्वर से डरें नहीं, प्रेम करें और प्रेरणा लें.
7. परमेश्वर के लिए कोईं बड़ा या छोटा नही है, सब समान हैं।
8. परमेश्वर धर्म और पंथ से ऊपर हैं।
9. प्रकृति, मानव एवम् जीवमात्र की सेवा ही परमात्मा की सेवा है।
10. परमेश्वर से प्रेम का अर्थ है, मानवता से प्रेम या मानवधर्म का अनुसरण करना।
11. सनातन धर्म मानव धर्म का ही दुसरा रुप हैं।
12. आत्मा अजर-अमर है।
13. हिन्दुओं के पर्व और त्योहार खुशियों से जुड़े हैं।
14. हिन्दुत्व का लक्ष्य पुरुषार्थ है जैसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष
15. हिन्दुत्व एकत्व का दर्शन है।
16. सनातन दृष्टि समतावादी और मानवतावादी हैं।
17.सनातन धर्म एकत्व का ब्रह्म दर्शन हैं।
18. परोपकार पुण्य है, दूसरों को कष्ट देना पाप है।
19. भारत इश्वर की धरती हैं।
सुर्य मंत्र :-
ॐ सुर्याय नम:
सुर्य गायात्री मंत्र :-
तत् सवितुर वरेण्यं, भर्गो देवस्य धीमहि, धियो योनः प्रचोदयात् !
तत्=सर्वव्यापी, परम, निराकार, सवितुर= सुर्य, वरेण्यं=तेजस्विता, भर्गो=वैभव, देवस्य=दिव्य, धीमहि=समर्पन करना, धियो=आशिर्वाद मांगना, योनः=विषिष्ट इक्छा, प्रचोदयात्=अनुग्रिहीत या धन्य
गायात्री मंत्र हैं :-
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
ऋग्वैदिक सनातन काल में सनातन धर्म के अलावा और कोई अन्य मुख्य सम्प्रदाय(वर्णाश्रम) नही था जैसे वैष्णव (जो विष्णु को परमेश्वर मानते हैं), शैव (जो शिव को परमेश्वर मानते हैं), शाक्त (जो देवी को परमशक्ति मानते हैं) और स्मार्त (जो परमेश्वर के विभिन्न रूपों को एक ही समान मानते हैं) इत्यादि। बाद मे वैदिक धर्म का आगमन हुआ। मानव का आत्मा ही ब्रह्म हैं और जब मानव ब्रह्म को अपने मन से जानने की कोशिश करता है, तब ब्रह्म भगवान हो जाता हैं। प्रणव ॐ (ओम्) ब्रह्मवाक्य है, जिसे सभी हिन्दू परम पवित्र शब्द मानते हैं। हिन्दू यह मानते हैं कि ओम् की ध्वनि पूरे ब्रह्माण्ड में गूंज रही है। ध्यान में गहरे उतरने पर यह सुनाई देता है। प्रणव ॐ (ओम्) ब्रह्मवाक्य के उच्चारण से आत्म ब्रह्म अपने भुतकाल और सृष्टि से जुड़े विषय की जानकारी देता हैं। ब्रह्म हिन्दू धर्मग्रन्थ उपनिषदों के अनुसार ब्रह्म ही परम तत्त्व है (इसे त्रिमूर्ति के देवता ब्रह्मा से भ्रमित न करें)। वो ही जगत का सार है, जगत की आत्मा है। वो विश्व का आधार है।
सनातन धर्म का सबसे बड़ा पर्व छठ पर्व हैं।
हिन्दू धर्म :
हिंदू धर्म में कई अलग-अलग उपासना पद्धतियाँ, मत, सम्प्रदाय और दर्शन इत्यादि समेटे हुए हैं। हिंदू धर्म में प्राकृतिक
शक्तियों की पूजा के अलावा कर्मकांडों, मंत्रोचार और मूर्ति पूजन की प्रमुखता हैं। हिन्दू धर्म को वैदिक सनातन वर्णाश्रम
धर्म भी कहा जाता है। चूँकि उत्तर वैदिक काल में भारत में केवल वैदिक धर्म को ही मानने वाले लोग थे, बल्कि तब तक
अन्य किसी धर्म का उदय नहीं हुआ था इसलिए "हिन्दू" शब्द सभी भारतीयों के लिए प्रयुक्त होता था। हिन्दू शब्द उत्तर
वैदिक काल में धर्म के बजाय राष्ट्रीयता के रूप में प्रयुक्त होता था। हिमालय के प्रथम अक्षर "हि" एवं इन्दु का अन्तिम
अक्षर "न्दु", इन दोनों अक्षरों को मिलाकर शब्द बना "हिन्दु" और यह भू-भाग हिंदु राष्ट्र, हिन्दुस्थान कहलाया।
हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्।
तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते॥
अर्थात् हिमालय से प्रारम्भ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है।
हिन्दू धर्म में कोई एक अकेले सिद्धान्तों का समूह नहीं है। इसके अन्तर्गत कई मत और सम्प्रदाय आते हैं और सभी को बराबर श्रद्धा दी जाती है। धर्मग्रन्थ भी कई हैं। फ़िर भी, वो मुख्य सिद्धान्त, जो ज़्यादातर हिन्दू मानते हैं, इन सब में विश्वास: धर्म (वैश्विक क़ानून), कर्म(और उसके फल), पुनर्जन्म का सांसारिक चक्र, मोक्ष (सांसारिक बन्धनों से मुक्ति--जिसके कई रास्ते हो सकते हैं) और बेशक, ईश्वर। हिन्दू धर्म स्वर्ग और नरक को अस्थायी मानता है। हिन्दू धर्म के अनुसार संसार के सभी प्राणियों में आत्मा होती है। मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो इस लोक में पाप और पुण्य, दोनो कर्म भोग सकता है और मोक्ष प्राप्त कर सकता है। हिन्दू धर्म में चार मुख्य सम्प्रदाय हैं : वैष्णव (जो विष्णु को परमेश्वर मानते हैं), शैव (जो शिव को परमेश्वर मानते हैं), शाक्त (जो देवी को परमशक्ति मानते हैं) और स्मार्त (जो परमेश्वर के विभिन्न रूपों को एक ही समान मानते हैं)। लेकिन ज्यादातर हिन्दू स्वयं को किसी भी सम्प्रदाय में वर्गीकृत नहीं करते हैं। प्राचीनकाल और मध्यकाल में शैव, शाक्त और वैष्णव आपस में लड़ते रहते थे। जिन्हें मध्यकाल के संतों ने समन्वित करने की सफल कोशिश की और सभी संप्रदायों को परस्पर आश्रित बताया। हिन्दुत्व के प्रमुख तत्त्व निम्नलिखित हैं-हिन्दू-धर्म हिन्दू-कौन?--
गोषु भक्तिर्भवेद्यस्य प्रणवे च दृढ़ा मतिः। पुनर्जन्मनि विश्वासः स वै हिन्दुरिति स्मृतः।।
अर्थात-- गोमाता में जिसकी भक्ति हो, प्रणव जिसका पूज्य मन्त्र हो, पुनर्जन्म में जिसका विश्वास हो--वही हिन्दू है।
हिन्दू धर्म के सिद्धान्त के कुछ मुख्य बिन्दु :-
1. ईश्वर एक नाम अनेक.
2. ब्रह्म या परम तत्त्व सर्वव्यापी है।
3. ईश्वर से डरें नहीं, प्रेम करें और प्रेरणा लें.
4. हिन्दुत्व का लक्ष्य स्वर्ग-नरक से ऊपर.
5. हिन्दुओं में कोई एक पैगम्बर नहीं है।
6. धर्म की रक्षा के लिए ईश्वर बार-बार पैदा होते हैं।
7. परोपकार पुण्य है, दूसरों को कष्ट देना पाप है।
8. जीवमात्र की सेवा ही परमात्मा की सेवा है।
9. स्त्री आदरणीय है।
10. सती का अर्थ पति के प्रति सत्यनिष्ठा है।
11. हिन्दुत्व का वास हिन्दू के मन, संस्कार और परम्पराओं में.
12. पर्यावरण की रक्षा को उच्च प्राथमिकता.
13. हिन्दू दृष्टि समतावादी एवं समन्वयवादी.
14. आत्मा अजर-अमर है।
15. सबसे बड़ा मंत्र सूर्य गायत्री मंत्र.
16. हिन्दुओं के पर्व और त्योहार खुशियों से जुड़े हैं।
17. हिन्दुत्व का लक्ष्य पुरुषार्थ है और मध्य मार्ग को सर्वोत्तम माना गया है।
18. हिन्दुत्व एकत्व का दर्शन है।
हिन्दू-धर्म हिन्दू-कौन?
गोषु भक्तिर्भवेद्यस्य प्रणवे च दृढ़ा मतिः। पुनर्जन्मनि विश्वासः स वै हिन्दुरिति स्मृतः।।
अर्थात-- गोमाता में जिसकी भक्ति हो, प्रणव ॐ (ओम्) जिसका पूज्य मन्त्र हो, पुनर्जन्म में जिसका विश्वास हो--वही हिन्दू है। मेरुतन्त्र ३३ प्रकरण के अनुसार
'हीनं दूषयति स हिन्दु '
अर्थात जो हीन (हीनता या नीचता) को दूषित समझता है (उसका त्याग करता है) वह हिन्दु है।
लोकमान्य तिलक के अनुसार-
असिन्धोः सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारतभूमिका। पितृभूः पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरिति स्मृतः।।
अर्थात्- सिन्धु नदी के उद्गम-स्थान से लेकर सिन्धु (हिन्द महासागर) तक सम्पूर्ण भारत भूमि जिसकी पितृभू (अथवा मातृ भूमि) तथा पुण्यभू (पवित्र भूमि) है, (और उसका धर्म हिन्दुत्व है) वह हिन्दु कहलाता है।
सनातनी हिन्दु :
वर्णाश्रम मत के अनुसार जब कोई हिन्दू कहता है कि वो भी सनातनी हिन्दू है तो इसका मतलब है कि वो व्यक्ति चार मुख्य सम्प्रदाय(वर्णाश्रम)
वैष्णव मत, शैव मत, शाक्त मत और स्मार्त(परमेश्वर) में आस्था और विश्वास है तथा सभी की पूजा करता हैं या मान्यता देता हैं। अगर कोई हिन्दू मुख्य रूप से केवल ब्रह्माण्ड को धारण करने वाले एकमात्र परमपिता परमेश्वर और प्राकृतिक के पूजक हैं तो वो हिंदू सनातनी हैं।
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