आत्मा क्यों नही दिखती हैं ? why the soul is not visible ?
आत्मा पारदर्शी क्यो होती हैं ? परमाणु के संरचना को देखने पर पता चलता हैं कि परमाणु में न्युक्लिअस और इलेक्ट्रॉन के बिच काफी खालि स्थान देखने को मिलता हैं । यानि कि एक परमाणु में जितने कण होते हैं उससे कहीं ज्यादा खाली स्थान होता हैं । हम जानते हैं कि इस दुनियाँ में हर तरह के ऑब्जेक्ट यहाँ तक कि हम इंसान भी परमाणु से मिलकर ही बने होते हैं। जब हम आसपास के चीजों को देखते हैं तो हम पाते हैं कि कुछ चीजें पारदर्शी होते हैं जैसे ग्लास और कुछ चीजें अपारदर्शी होते हैं जैसे लकड़ी । आप सोचते होंगें कि जब सारी चीजें परमाणु से बनी हैं तो केवल कुछ चीजें पारदर्शी क्यों होती हैं । ग्लास पारदर्शी होता हैं । ग्लास को एक प्रकार के बालु से बनाई जाती हैं जिस में कोवार्ड क्रिस्टल(सिलिका) के छोटे- छोटे कण होते हैं । ग्लास बनाई जाने वाले बालु में सिलिका, सोडियम, कैल्सियम होते हैं जिसे 1700 डिग्री ताप पर पिघला कर कैमिकली रूपांतरित कर दिया जाता हैं । अत्यधिक ताप पर पिघलने के कारण सिलिका कैमिकली अपनी वास्तविक संरचना को छोड़ देता हैं और कैमिकली तरल संरचना धारण कर लेता हैं। फिर इसे तेजी से ठण्डा किया जाता हैं पर ठण्डा करने के बावजूद भी ये तरल रुप मे ही रह जाता हैं। ठीक इसी तरह इंसान के मृत्यु के बाद उसका शरीर ठंडा पड़ जाता हैं। एक परमाणु के संरचना को देखेंगे तो पायेंगे कि एक परमाणु के बिच में एक न्यूक्लियस होता है और इस्के चारो ओर इलेक्ट्रॉन बादल होते हैं । न्यूक्लियस के चक्कर लगाने वाले इलेक्ट्रॉन बादल के तीन उर्जा स्तर होते हैं और प्रत्येक उर्जा स्तर का न्यूक्लियस के चारो ओर अपना एक अलग ओर्बिट होता हैं । कम उर्जा वाले इलेक्ट्रॉन न्यूक्लियस के नजदीक वाले कक्षा में चक्कर लगाते हैं जबकी ज्यादा उर्जा वाले इलेक्ट्रॉन न्यूक्लियस के दुर वाले कक्षा में चक्कर लगाते हैं । इस कारण न्युक्लियस के नजदीक वाले कक्षा में चक्कर लगा रहे इलेक्ट्रॉन कुछ और ज्यादा उर्जा प्राप्त करके उपरी कक्षा में जा सकते हैं जबकी उच्च स्तर वाले इलेक्ट्रॉन अपनी उर्जा खोकर नजदीक वाले कक्षा में आ सकते हैं। अलग अलग प्रकार के सॉलिड के एटम में ये ऊर्जा का स्तर अलग अलग दुरी पे मौजूद हो सकते हैं यानि किसी सॉलिड में दुरी पे और किसी अन्य सॉलिड में कम दुरी पे मौजूद हो सकते हैं । हम जानते हैं कि लाइट के पैकेट को फोटॉन कहा जाता हैं और आप ये भी जांते हैं कि इलेक्ट्रॉनों में कणों और तरंगों के गुण होते हैं: वे अन्य कणों के साथ टकरा सकते हैं और प्रकाश की तरह फैल सकता है। इलेक्ट्रॉनों के आकार बादलों के समान हैं जो एक परमाणु के नाभिक के चारों ओर होते हैं। एक इलेक्ट्रॉन एक निश्चित मात्रा में ऊर्जा रखता है। फोटॉन जब इलेक्ट्रॉन से तकराता हैं तो वो अपनी उर्जा इलेक्ट्रॉन को दे देता हैं । ये उर्जा अगर इलेक्ट्रॉन को उसके उच्यतर स्तर पर ले जाने मे सक्षम हुई तो इलेक्ट्रॉन उस ऊर्जा को अवशोषित करके उच्यतर लेवल में चला जता हैं । फोटॉन की ऊर्जा लेकर जब कभी भी इलेक्ट्रॉन हाइ लेवल में चला जाय तो हमें केवल दो चीजें ही देखने को मिल सकती हैं 1) परावर्तन एवम् प्रकीर्नन 2) प्रकाश का अवशोषण । 1)जब इलेक्ट्रॉन फोटॉन अवशोषित कर उच्यतम स्तर मे चला जाता हैं तो उस अवस्था को उत्तेजक अवस्था कहा जाता हैं जो समान्यतह ये अस्थिर होता हैं । जब इलेक्ट्रॉन उत्तेजक अवस्था से अपने मुल अवस्था में आता हैं तो फोटॉन के रुप में ऊर्जा बाहर निकलता हैं जो हमें रौशनी के रुप में दिखाई देता हैं। ठीक इसी तरह अगर स्पिरिचुअल इलेक्ट्रॉन उत्तेजक अवस्था से अपने मुल अवस्था में आता हैं तो आत्मा अग्नी के रूप में दिखाई दे सकती हैं। लेकिन ये रुप कुछ पल के लिए होती हैं। आत्मा के इस रुप को हमने कई बार देखा हैं। 2) फोटॉन जब इलेक्ट्रॉन से तकराता हैं तो वो अपनी उर्जा इलेक्ट्रॉन को दे देता हैं । ये उर्जा अगर इलेक्ट्रॉन को उसके उच्यतर स्तर पर ले जाने मे सक्षम हुई तो इलेक्ट्रॉन उस ऊर्जा को अवशोषित करके उच्यतर लेवल में चला जाता हैं, ये अवशोशित उर्जा हमें हिट के रुप में देखने को मिलता हैं। ठीक इसी तरह अगर आत्मा किसी व्यक्ति के संपर्क में आती है तो आत्मा का फोटॉन व्यक्ति के इलेक्ट्रॉन से टकराता हैं, तो वो उर्जा इलेक्ट्रॉन को दे देता हैं और व्यक्ती के इलेक्ट्रॉन के द्वारा ऊर्जा अवशोषित होकर उच्चतर लेवल में चला जाता है तब व्यक्ति की शारीरिक ऊर्जा बढ़ जाती है और जैसी गतिविधि आत्मा में होती है वैसी गतिविधि व्यक्ति के शरीर में होती जाती है। और व्यक्ति महसूस करता है कि उसे भूत पकड़ लिया हैं।लेकिन अगर फोटॉन के पास इतनी उर्जा ना हो कि वो इलेक्ट्रॉन को उच्यतर स्तर तक पहुँचा सके। ऐसे परस्थिति में फोटॉन इलेक्ट्रॉन के परस्पर प्रभाव मे आते ही नही हैं और सीधे फोटॉन उस वस्तुओं को पास करते हुए निकल जाते हैं। जिन वस्तुओं ऐसा होता हैं वो वस्तु हमें पारदर्शी नजर आता हैं। इस सिद्धांत को बैंड सिद्धांत कहा जाता हैं क्योँकि इस प्रकार के वस्तुओं में इलेक्ट्रॉन के बिच बैंड गैप ज्यादा होते हैं। हम जानते है कि हमारे आँखों से वर्णक्रम(spectrum) निकलकर वस्तुओं से टकराता हैं तो हमारे आँखों के वर्णक्रम वस्तुओं के इलेक्ट्रॉन के परस्पर प्रभाव मे आ जाते हैं और वो वस्तु हमें दिखने लगता हैं । लेकिन जब हमारी नजर आत्मा पे पड़ती हैं तो आत्मिक शरीर के अंदर मौजूद इलेक्ट्रॉन हमारे आँखों के वर्णक्रम को या तो अवशोषित कर लेती हैं या आत्मिक शरीर से टकराकर पास करते हुए निकल जाते हैं, इसी कारण हमें आत्मा दिखाई नही पड़ती हैं । परंतु हमें आत्मा कभी-कभी दिखाई देती हैं, वो भी तब दिखाई देती हैं जब चांदनी रात होती हैं । हमें आत्मा तब दिखाई देती जब हमारी आँखों की उर्जा यानि वर्णक्रम को आत्मा के अंदर मौजुद इलेक्ट्रॉन अवशोषित कर लेती हैं क्योकि इलेक्ट्रॉन आई स्पैक्ट्रम की उर्जा को अवशोषित कर उच्यतर ओर्बिट में चला जाता हैं, ये अवशोशित उर्जा हमें हिट के रुप में देखने को मिलता हैं और आत्मा हमें दिखाई दे जाती हैं। आपको पता हैं कि हमारे ब्रह्मांड में प्लाज़्मा सबसे ज्यादा हैं। क्योँकि आत्मा में रासायनिक संरचना क्रिस्टलीय होती हैं और आत्मा में प्लाज़्मा संघनित अवस्था में होती हैं इसिलिए दिन के उजाले में हॉट या वर्म प्लाज्मा के बदले रात के अंधेरे वातावरन में कोल्ड प्लाज्मिक अवस्था अधिक होने के कारण हमारे आँखों के वर्णक्रम(spectrum) आत्मा से टकराकर अवशोषित हो जाते हैं। अतह हमें आत्मा दिखाई दे जाती हैं। आत्मिक शरीर में मुल रुप से ओक्सिजन, हाइड्रोजन, हिलियम, नाइट्रोजन, कार्बन, सिलिकॉन, सोडियम और फोसफोरस इत्यादि रासायनिक तत्वों के परमाणु मौजूद होते हैं जो आयनिक अवस्था में उपस्थित रहते हैं। आत्मा मुल रुप से एक ब्रेन सिस्टम हैं। आत्मा मे सभी परमाणु मिलकर एक इलेक्ट्रोन्यूक्लिक न्यूरॉन सेल का निर्मान करता हैं। आत्मा मे इन इलेक्ट्रोन्यूक्लिक न्यूरॉन सेल की संखया लगभग 10 लाख होती हैं। आत्मा की रासायनिक संरचना परिवर्तनशिल होती हैं, कभी जालीनुमा तो कभी परिवर्तित होकर कोई और संरचना में बदल सकती हैं और सभी संरचना में कभी कम कभी ज्यादा बैण्ड गैप (परमाणु के अंदर न्युक्लिअस के आस-पास स्थित तीन ओर्बिट के बिच खाली स्थान) होते हैं। आत्मा का परिवर्तनशील होने का मतलब हैं कि आत्मा किसी भी जीव-जंतु, कीट-पतंग, पशु-पक्षी इत्यादी मे परिवर्तित होकर उस जीव के संरचना के अनुसार खुद को ढाल लेना या उस जीव कई रुप मे दिखाइ देना या कभी-कभी केवल ब्रेन लाइक संरचना दिखना तो कभी-कभी पुर्न शारिरिक संरचना दिखना तो कभी केवल अग्नि रुप में दिखना तो कभी इंशानी रुप में दिखना।....

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