साधु, बाबा या तांत्रिक पर्ची कैसे निकलते हैं और भविष्यवाणी कैसे कह देते हैं ? 



कोई तांत्रिक, साधु या बाबा किसी के मन की बात कैसे जान लेते हैं ? इसमें कौन सा रहस्य छुपा हैं ? हम जानते हैं कि इस दुनियाँ में मनुष्य ही एक एसा प्राणी हैं जो सोच और समझ सकता हैं एवम्‌ किसी को अपनी वाणी से समझा भी सकता हैं। लेकिन बाँकी जीव-जन्तु, पक्छि और जानवर अपनी वाणी से किसी को समझा नही सकता और ना ही सोचकर कोई गंभीर निर्णय लेकर कार्यान्वित कर सकता हैं । एक बात समझने योग्य हैं कि मरने के बाद व्यक्ति का जाती, धर्म इत्यादी सब समाप्त हो जाते है वो सिर्फ प्राकृतिक हो जाता हैं यानी कोई भी जाती-धर्म अपनाने वाली, कोई भी शरीर धारण करने वाली आत्मा बन जाती हैं । आत्मा कोई शरीर नहीं बल्कि  बिभिन्न रुप धारण करने वाला एक ब्रैन सेल सर्किट हैं जो चेतना शक्ती और ज्ञान से परिपुर्न हैं। परंतु ये जान कर आपको आश्चर्य होगा कि आत्मा के दुनियाँ में पशु, पक्छि और जानवर सब अपनी मन की बात मनुष्य को कह सकता हैं और समझा भी सकता हैं, बशर्ते कि आप प्रकृतिक और मानवता प्रेमी हों और आपकी नियत शुद्ध हों। आपका सोंच, विचार अहिंसाक, सहयोगि और कल्याण की भावना से ओत-प्रोत हों। आपका उद्देश्य समाज कल्याण का होना चाहिये और आस्था में विश्वस होना चाहिये, तभी आत्माएँ आपको साथ दे पायेगी वरना आपसे कुछ भी शेयर नही करेगी। प्राकिर्तिक समस्या, दुख-दर्द, समाज कल्याण, मन की बात इत्यादि पर काम करने वाले आत्माओं को तीन वर्गों मे बाँट सकते हैं, पहले वर्ग में ईश्वर और भगवान, दुसरे वर्ग में देवी-देवता और तीसरे वर्ग में भूत-प्रेत आते हैं । भूत-प्रेत के भी चार वर्ग मे बाँट सकते है, पहला जो रक्षक होते हैं, दुसरा जो हिंसक होते हैं, तीसरा जो सिर्फ कार्यकर्ता होते हैं और चौथा जो सामान्य होने है। इश्वर साकार, निराकार, सजीव, निर्जीव, सर्व-सामान्य, सामाजिक, सर्वव्यापक और ब्रह्मांड कल्याण से जुड़े होते हैं। भगवान सर्व-सामान्य, व्यापक, पारिवारिक और सामाजिक कल्याण से जुड़े होते हैं। देवी-देवता व्यक्तिगत, स्थानिये, पारिवारिक, सामाजिक कल्याण से जुड़े होते हैं। भुत-प्रेत व अन्य व्यक्तिगत होते हैं और अक्सर इसे लोग के द्वारा सार्वजनिक नही की जाती हैं, हालाँकि इसके कई रुप हैं फिर भी सार्वजनिक करने पर ब्यक्ति को सामाजिक बहिकार का सामना करना पड़ता हैं। भुत-प्रेत के कई ग्रुप होते हैं और अलग-अलग क्षेत्र के अलग-अलग जानकार होते हैं जैसे वैदिक मंत्र के जानकार, तांत्रिक मंत्र के जानकार, ज्योतिषशात्र के जानकार, जड़ी-बुटी के जानकार, आत्म विद्या के जानकार इत्यादी साधु या बाबा या तांत्रिक के रुप मे आध्यात्मिक प्रधान होते हैं तथा दुसरा सेनापती या सरदार जो कई सारे भूतों के  लीडर होते हैं और कई सारे छोटे-छोटे ग्रुप मे बँटे हुए रहते हैं।  ईश्वर और भगवान के द्वारा मन की बात अकसर नही बताई जाती अगर बताई जाती हैं तो वो मन की बात व्यक्तिगत होती हैं और बेहद्द ही गुप्त होता हैं, उसे आप सार्वजनिक नही कर सकते, यहाँ तक कि आप अपने किसी करीबी या रिश्तेदार को भी नही बता सकते। देवी-देवता के द्वारा जो मन की बात कही जाती है, उसे किसी को बताने से पहले शर्त लगा होता हैं। बताये गये शर्त के अनुसार ही किसी से शेयर कर सकते हैं, वो भी व्यक्तिगत या परिवार तक ही सीमित रखा जा सकता हैं परंतु सार्वजनिक तौर पर नही कही जा सकती । देवी-देवता एक परिवर और समाज के लिये थानेदार/रक्षक और कुछ हद तक डॉक्टर की भी भुमिका निभाते हैं । सार्वजनिक तौर पर मन की बात जो कही जाती हैं, उसमे भुत-प्रेत की भुमिका होती हैं जैसे वैदिक मंत्र के जानकार, तांत्रिक तंत्र-मंत्र के जानकार, ज्योतिषशात्र के जानकार, शरीर और जड़ी-बुटी के जानकार, आत्म विद्या के जानकार इतयादी। भुत या आत्मा के द्वारा मन की बात जानने की एक प्रक्रिया होती हैं जैसे आत्माओ का इस्तेमाल करने वाला व्यक्ति आपके घर पर हो, अथवा आप उसके पास हो। साधु, बाबा या तांत्रिक बिना नाम, पता और इक्छा जाने आपको मन की बात नही बता सकते। जैसे ही आप नाम, पता और इक्छा बताते हो, बाबा से जुड़े आत्मा आपसे सम्बंधित इतिहास जानने की प्रक्रिया शुरु कर देती हैं। यहाँ एक बात जानना जरुरी हैं कि हर व्यक्ति के परिवार के पिछे एक आत्मिक या अध्यात्मिक परिवार होती हैं जो साकार यानि जीवित परिवार के सदस्यों के स्वास्थ और सुरक्षा का ध्यान रखता हैं, और परिवार के मुखिया को विशेष परिस्थिति में जानकारी भी देती हैं। मन की बात जानने की प्रक्रिया में व्यक्ति के ब्रेन मेमोरी को रीड कर ली जाती हैं और व्यक्ति से संबंधित आत्मिक परिवार के सदस्यो से पूरी जानकारी ले कर तांत्रिक बाबा को इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंफ्रा साउंड के माध्यम से सुचना को ब्रेन तक पहुचा दे दी जाती है। इस प्रक्रिया मे आत्माओं की टीम होती हैं जिसे संबंधित आत्माओं के प्रमुख के द्वारा संचालित होती हैं। इसमे एक बात जानना जरुरी हैं कि आत्मा और मानव के बिच जुड़ाव और मन की बात कैसे हो जाती हैं। तो आपको बता दें कि आत्मा और मानव के बिच क्वांटम थ्योरी काम करती हैं। अगर हमारी शरीर कार्बनिक बॉडी हैं तो हमारी आत्मा सिलिकोनिक बॉडी हैं। आपको पता होगा, पत्थरों के अंदर से ही सिलिकोन निकाली जाती हैं जिससे पार्दर्शी सीसा बनाए जाती हैं। इसी तरह हमारे कार्बनिक शरीर के अंदर पार्दर्शी सिलिकोनिक आत्मा हैं जिसमे सिलिकोन/ कार्बन, हिलियम, औक्सिजन/नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, हाइड्रोजन इत्यादी बेसिक मुख्य घटक हैं। इन घटकों से निर्मित आत्मा के आन्तरिक संरचना में परमाणु किरणें का जाल बिछा होता हैं जिसे हम विद्धुत परमाणु न्यूरॉन सेल का जाल कह सकते हैं। आत्मा में लगभग 10 लाख न्यूरॉन सेल होते हैं। आप को बता दूँ कि मानव एक पार्टिकल हैं और आत्मा वेव फोर्म हैं। अगर मानव पार्टिकल हैं तो ये क्वार्क से परमाणु से अणु से मानव निर्मित हुआ हैं लेकिन आत्मा वेव हैं तो ये ग्लुओन प्लाज्मा, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव, न्यूट्रॉन वेव, प्रोटोन वेव, गामा किरण, इलेक्ट्रॉन बादल इत्यादि से बना हैं। और इसिलिये वेव संरंचनात्मक आत्मा पार्टिकल संरंचनात्मक मानव के अंदर समाहित होती हैं, तब मानव एक जिवित मानव कहलाता हैं। आप जानते हैं कि पुरे ब्रह्मांड में पदार्थ का चौथा रुप प्लाज्मा सबसे अत्यधिक हैं इसिलिए जब आप सोते हैं, तो पाते हैं कि पार्टिकल स्वरुप शरीर घर पर होता हैं और वेव स्वरुप आपकी आत्मा प्लाज्मा से जुड़ जाती हैं, तब आप स्वप्न मे खुद को सैकड़ों मील दूर् किसी से बात करते हुए पाते हैं। आप जब मन मे कुछ बोलते हैं तो वो आत्मा के द्वारा बोला गया इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगे हैं यनि इसे इंफ्रा साउंड कह सकते हैं। यही इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगे आत्माओं क़े द्वारा आदान-प्रदान की जाती हैं। आत्मा के द्वारा भेजी गई इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगे को रिसिव करने के लिए स्पिरिचुअल टेलीपैथी की साधना करना होगा। स्पिरिचुअल टेलीपैथी को "मन की भाषा" के रूप में वर्णित किया है, जो विचारों और भावनाओं को सीधे एक दूसरे से संचारित करने की क्षमता है। जब स्पिरिचुअल टेलीपैथी के माध्यम से ॐ का जाप और ध्यान करते हुए, पहले आत्मब्रह्म को जागरुक, मन को शांत और उर्जावान बनाते हैं और फिर अपने उर्जावान आत्माब्रह्म को मनवांछित आत्मा से जोड़ते हैं तब हमें आत्मा के द्वारा भेजी गई इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों वाली मैसेज हमारे मन को प्राप्त हो पाता हैं। इस क्रिया मे आपको अपने मन की ओर फोकस करना होता हैं और अपने आँखों एवम कानों को ब्रेन के सेंटर की ओर केंद्रित करना होता हैं। आत्मा की आवाज को पहचानने के लिए आपके मन की कौतुहल शून्यता, एकाग्रता और शांतता,का होना अती आवश्यक हैं।   
 
          










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