महर्षि मनु और उनका युग यात्रा - धर्मसंस्थापनार्थाय :-
- धृति क्षमा दमोस्तेयं, शौचं इन्द्रियनिग्रहः।
- धीर्विद्या सत्यं अक्रोधो, दशकं धर्मलक्षणम् ॥
- अर्थ - धर्म के दस लक्षण हैं - धैर्य, क्षमा, संयम, चोरी न करना, स्वच्छता, इन्द्रियों को वश में रखना, बुद्धि, विद्या, सत्य और क्रोध न करना (अक्रोध)।
- यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।
- यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।।
- अर्थ - अर्थात् जहाँ स्त्रियों का आदर किया जाता है , वहाँ देवता रमण करते हैं और जहाँ इनका अनादर होता है , वहाँ सब कार्य निष्फल होते हैं।[14] [15][16]
- प्रजनार्थं महाभागाः पूजार्हा गृहदीप्तयः ।
- स्त्रियः श्रियश्च गेहेषु न विशेषोऽस्ति कश्चन ॥
अर्थ - स्त्रियां सन्तान को उत्पन्न करके वंश को आगे बढ़ाने वाली हैं , स्वयं सौभाग्यशाली हैं और परिवार का भाग्योदय करने वाली हैं , वे पूजा अर्थात् सम्मान की अधिकारिणी हैं , प्रसन्नता और सुख से घर को प्रकाशित या प्रसन्न करने वाली हैं , यों समझिये कि घरों में स्त्रियों और लक्ष्मी तथा शोभा में कोई विशेष अन्तर नहीं है अर्थात् स्त्रियां घर की लक्ष्मी और शोभा हैं ।[17]
आसमुद्रात्त वै पूर्वादासमुदात्त पश्चिमात्।
नयोरेवान्तरं गिर्योरार्यावर्त्त विदुर्बुधाः ॥
अर्थ - जिस क्षेत्र के पूर्व और पश्चिम में समुद्र है , जो पर्वतों के मध्य है तथा घिरा हुआ है वह सरस्वती तथा दृषद्वती ( ब्रह्मा कि इरावती ) नदियों के अंतर में स्थित है । वह देव निर्मित आर्यावर्त देश है ।[18]
सतयुग :- महर्षि मनु का जन्म सतयुग मे हुआ था। महर्षि मनु ब्रह्मा ( सुर्यदेव ) के पुत्र थे। मनु सूर्यवंशी योगीपुरुष थे। जैसे त्रेतायुग मे जन्मे श्रि राम को विष्ण के एक अवतारी पुरुष माना गया और मर्यादा पुरूषोतम कहा गया, वैसे ही सतयुग में मनु को योगेश्वर तथा महर्षि कहा जाता था। जब त्रेतायुग में राम अयोध्या के राजा थे तो इसका मतलब ये हुआ कि राम से हजारो साल पहले से ही गृह एवं समाजिक व्यवस्था और संरचना का विकास हो चुकी थी। इसिलिए हम कह सकते हैं कि महर्षि मनु क सामाजिक व्यवस्था के उतरकाल में अवतार हुआ और वो गृह, सामाज, धर्म, वीधि और न्याय के प्रणेता एवं व्यवस्थापक और साथ ही सनातन धर्म के जनक बने। प्रथम गीता के रचैयता महर्षि मनु थे।
त्रेतायुग :- महर्षि मनु का जन्म त्रेतायुग में मर्यादा पुरूषोतम श्रि राम के समय मे चैत्र पू्र्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र में जंगल की गुफा में हुआ था। त्रेतायुग में अद्वितीय शक्तियां और ताकत, अत्यंत बलिष्ठ, कंधे पर जनेऊ, अंहकार शून्यता और काफी विनम्र पुरुष थे। वे सुर्यवंशी राजा के कुल मे जन्म लिये थे। वे सदाचारि, ब्रह्मचारी, आत्मसंयमी, व्याकरणविद्, एक विद्वान योगी पुरुष थे।
द्वापरयुग :- महर्षि मनु का जन्म द्वापरयुग में योगेश्वर श्रि कृष्णा के समय में उत्तर फाल्गुन नक्षत्र में जंगलों में जन्म हुआ था। द्वापरयुग में सबसे अच्छे धनुर्धर, गांडीवधारी , ताकतवर और बुद्धिमान, पराक्रमी, प्रभावशाली व्यक्तित्व, शिघ्रकारिता, स्फूर्तिवान, विशादहीनता और धर्यवान पुरुष थे। वे चंद्रवंशी राजा के कुल में जन्म लिये थे।
कलयुग :-महर्षि मनु का जन्म कल्युग के अंत में उस समय होगा जब सनातन, वैदिक और हिंदू तीनों पतन के अंतिम कागार पर आ जायेंगे और बांकी पंथ भी किसी ना किसी करण से या तो हाँस होने लगेंगे या खंडित होकर टूट जाएँगे तब अद्वितीय शक्ति, धर्यवान, विद्वान योगी पुरुष के रुप में अपने जोड़ी के साथ जन्म लेंगें।

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